भारतीय दर्शन (Indian Philosophy)
आस्तिक दर्शन – वेद पर आधारित
(Theist - Based on Vedas and Upanishad)
नास्तिक दर्शन -- वेद न मानने वाला
(Atheist - Non believer in Vedas)
सांख्य दर्शन(Sankhya)
(तत्वों की निर्धारित संख्या)
प्रवर्तक - कपिल मुनि (Kapil Muni) मूल ग्रंथ - सांख्य सूत्र
ब्रह्माण्ड या सृष्टि का निर्माण प्रकृति व पुरुष से हुआ है। दोनों ही अनादि तथा अनंत हैं ।
दो मूल तत्व - ( अत: द्वैतवादी दर्शन)
प्रकृति - जड़ या अव्यक्त
पुरुष - चेतन तत्व या आत्मा
प्रकृति की 23 प्रवृत्तियाँ हैं।
कूल तत्व -25
सांख्य दर्शन सिद्धांत की विशेषताएँ
यह ईश्वर के स्वतंत्र अस्तित्व को नहीं मानता ।
25 तत्वों का ज्ञान होना जीवन दर्शन है।
जीवन का अंतिम लक्षय मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त करना। जिसकी प्राप्ति ज्ञान व योग साधना से सम्भव है।
इंद्रियाँ -
5 - ज्ञानेंद्रियाँ
5 - कर्मेंद्रियाँ
1 - मन
तीन गुण (सत, रज, तम) के विभिन्न संयोग से प्रकृति प्रकट होती है ।
प्रत्येक जीव एक लघु तत्व समिष्टि है, इसका नियंता पुरुष है ।
तत्व तथा तत्वों की कुल संख्या
सांख्य दर्शन पर आधारित शिक्षा
शिक्षा के द्वारा प्रकृति व पुरुष के भेद का ज्ञान प्राप्त करना ।
मनुष्य की बाह्य तथा आंतरिक रचनाओं का ज्ञान प्राप्त करना ।
शिक्षा प्रक्रिया बालकेंद्रित मानी गयी है ।
पाठ्यक्रम
कर्मेंद्रियों व ज्ञानेंद्रियों के विकास के लिये पाठ्यवस्तु तथा खेल-कूद और शारीरिक व्यायाम
जीवनपर्यन्त स्वाध्याय
योग दर्शन के नियम
शिक्षण विधियाँ
सूत्र विधि
प्रत्यक्ष विधि
अनुमान विधि
शब्द विधि
क्रिया एवं अभ्यास विधि
Sankhya Darshan
Founder - Kapil Muni Written Text- Sankhya Sutra
Dualistic astika school of Indian philosophy.
Two main elements - Prakriti and Puruṣa
Jiva ('a living being') is constructed by purusha and prakriti.
Puruṣa is the consciousness. Prakriti is the primordial matter. It is inactive, and unconscious, and consists of an equilibrium of the three guṇas ('qualities, innate tendencies'), namely sattva , rajas, and tamas.
Total element are 25
When prakṛti comes into contact with Purusha this equilibrium is disturbed, and Prakriti becomes manifest, evolving twenty-three tattvas.
The end of the bondage of Purusha and prakriti is called liberation (Moksha) or kaivalya (Isolation) by the Samkhya school.
Education based on Sankhya
Acquire knowledge of prakriti and purusa.
Knowledge of internal and external structure of human being.
Child centered education
Curriculum
Curriculum to develop senses and physical activities like games
Self study
Theories of Yoga darshan
Teaching Methods
Formula methods
Empirical methods
Imagination based methods
Verbal methods
Practice and experimental methods
योग दर्शन(Yoga)
(समाधि)
प्रवर्तक - पतंजलि (Patanjali) मूल ग्रंथ - योगसूत्र
ब्रह्माण्ड या सृष्टि का निर्माण प्रकृति व पुरुष के योग से हुआ है ईश्वर द्वारा ।
ईश्वर , प्रकृति , पुरुष तीनों ही अनादि तथा अनंत हैं ।
सांख्य के तत्व विचार का व्यावहारिक रूप ।
मुख्य तत्व -4 - ईश्वर, प्रकृति, जगत, पुरुष
कुल तत्व- 25+1 =26
चित्त (आंतरिक उपकरण) - मन, बुद्धि, अहंकार
दर्शन सिद्धांत की विशेषताएँ
यह दर्शन पुरुष व प्रकृति से ऊपर उठकर ईश्वर जैसी परम शक्ति में विश्वास करता है ।
ईश्वर कर्मफल के भोग से मुक्त और आत्मा को कर्मफल का भोक्ता
मोक्ष- आत्मा द्वारा आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि या प्रज्ञा प्राप्त कर लेना अंतिम उद्देश्य है।
मोक्ष प्राप्त करने के लिए विचार शुद्ध व शुभ होने चाहिए, जो कि योग साधना से सम्भव है ।
आठ योगांग द्वारा योग साधना
यम - अहिंसा,सत्य, आस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह
नियम - शौच (शुचिता), संतोष, तपस, स्वाध्याय, ईश्वर प्रतिधान की आदते
आसन - योगासन
प्राणायाम - श्वास को नियंत्रित करना
प्रत्याहार - सात्विक भोजन
धारणा - चित्त पर नियंत्रण तथा वांछनीय पदार्थों पर ध्यान केंद्रित करना
ध्यान - निर्बाधित रूप से ध्यान करना
समाधी - अंतिम अवस्था (आत्मा व परमात्मा का मेल)
प्रथम पाँच योगांग शरीर और इंद्रिय नियंत्रण के लिए है
योग दर्शन पर आधारित शिक्षा
उद्देश्य सांख्य के समान हैं परन्तु इनकी प्राप्ति के लिए सहायक उद्देश्य भी हैं ।
अष्टांग योग मार्ग द्वारा सिद्धियों की प्राप्ति
पाठ्यक्रम
धर्मशास्त्र
नीतिशास्त्र
दर्शनशास्त्र
मनोविज्ञान
शरीर विज्ञान
योगाभ्यास
शिक्षण विधियाँ
उपदेश विधि
व्याख्यान विधि
विश्लेषण तथा संश्लेषण विधि
सूत्र विधि
श्रवण, मनन, ध्यान धारणा विधि
अभ्यास या क्रिया विधि
तर्क विधि
अनुमान विधि
Yoga Darshan
Founder - Patanjali Written Text - Yoga sutra
The metaphysics of Patanjali is built on the same dualist foundation as the Samkhya school.
The universe is conceptualised as of two realities in Samkhya-Yoga schools: Puruṣa (consciousness) and prakriti (mind, cognition, emotions, and matter).
The end of this bondage is called Kaivalya, liberation, or moksha by both Yoga and Samkhya schools. The ethical theory of Yoga school is based on Yamas and Niyama, as well as elements of the Guṇa theory of Samkhya.
Patanjali differs from the closely related Samkhya school by incorporating "personal god". The Yogasutras of Patanjali use the term Isvara.
Patanjali's concept of Isvara in Yoga philosophy functions as a guide for aiding the yogin on the path to spiritual emancipation. Whereas the purusa (spirit, or true self) of the yogin is bound to the prakriti - the material body subject to karmas, the special purusa called Isvara is immaterial and ultimately free.
Total elements = 26
Yoga Sadhna
Ashtanga Yoga is the yoga of eight limbs.
1. Yama - restraints or ethics of behaviour ; Yama consists of Ahimsa (Non violence), Satya (Truthfulness), Asteya (Non stealing), Brahmacharya (Chastity) and Aparigraha (Non possession)
2. Niyama - observances ; Niyama consists of Saucha (Cleanliness), Santosha (Contentment), Tapas (Austerity), Svadhyaya (Selfstudy) and Isvara Pranidhana (Devotion to the lord)
3. Asana - A physical posture in which one can be steady and comfortable.
4. Pranayama - control of the prana (breath)
5. Pratyahara - withdrawal of the senses
6. Dharaṇa - concentration
7. Dhyana - meditation
8. Samadhi - absorption
Education based on Yoga darshan
Education objectives are the same as sankhya darshan, with some complementary objectives.
Gaining samadhi by ashtanga yoga.
Curriculum
Includes religious knowledge
Ethical knowledge
Philosophy
Psychology
Anatomy
Yogabhyas (physical exercise)
Teaching methods
Lecture method
Analytical and synthesis method
Reasoning
Imagination
Experimental and practical method
अद्वैतवाद (Advaita)
प्रवर्तक - शंकराचार्य मूल ग्रंथ - ब्रह्मसूत्र, गीता, उपनिषद पर आधारित
तत्व-एक ब्रह्म
एको ब्रह्म द्वितिय नास्ति -अद्वैत
निर्गुण ब्रह्म ही एकमात्र सत्य है
ब्रह्म स्वयं ही ज्ञान है, ज्ञाता है, तथा ज्ञेय है
आत्मा तथा ब्रह्म में कोई अंतर नहीं है
आत्मा के रूप में ब्रह्म सबमें व्याप्त हैं
ब्रह्म को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है
ब्रह्म अनुभूति का विषय है
ब्रह्म भाव को मोक्ष माना गया है
ब्रह्म आनंद है
आनंद से सम्पूर्ण प्राणी उत्पन्न होते हैं
आनंद से उत्पन्न होकर उसी में विलीन हो जाते हैं
Advaita (“Nondualism” अद्वैतवाद )
Founder - Shankaracharya Brahma-sutras,
Only one kind of ultimate substance - Monism
Shankara in his philosophy starts not with logical analysis from the empirical world but rather directly with the absolute Brahma (one and only God).
Brahma is real and the world is unreal.
Brahma is without any qualities (nirguna).
There is no difference between self and Brahma.
Brahma is beyond the time, space, and causality, which are simply forms of empirical experience.
The self is nothing but brahma. Insight into that identity results in spiritual release which is called moksha (salvation).
A jiva is deluded soul by egoism, desires, and other impurities and thereby experiences duality and separation.
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